मै पुरुष हूं
मैं पुरुष हूं,
मेरा नारी से सवाल है
क्या हर पुरुष, होता एक समान है..?
माना दुष्ट बहुत है पुरुषों में,
पर क्या संत है होती नारियां
क्या पुरुष है केवल आनंद में
और दुखी है सारी नारियां
अक्सर तुमको देखा है
पुरुषों को ललकारते
गुनाह एक का दोषी सारे
सब हमको ताना मारते
जिसने किया उसको बोलो
उसका भी एक नाम है
क्यों हर बार और हर जगह
केवल पुरुष ही बदनाम है
मैं साथ नहीं अन्याय के
ये तुम भी खूब जानती हो
फिर भी हर गुनाह का जिम्मेदार
तुम पुरुषों को क्यों मानती हो
हे देवी,
क्या तू इन सब बातों से अनजान है...
मैं पुरुष हूं,
मेरा नारी से सवाल है
क्या हर पुरुष, होता एक समान है
होंगे कई,
जिन्होंने दर्द दिया होगा
तेरे अधिकारों में,
शायद फर्क किया होगा
किंतु नेकी की मिसाल भी तो है
जाने कितनो ने कई बार
तेरा भी पक्ष लिया होगा
रावण मुझमे था, किंतु राम भी तो था
कंश मुझ में था, किंतु श्याम भी तो था
तुम भी तो सुर्पनखा बन कर आई थी
इसको क्यों भूल जाती हो
जब भी देती हो मिसाल
तुम तो सीता बन जाती हो...
तुम कहती हो, कि तुम झांसी की रानी थी
तो बताओ जिसके कारण युद्ध हुआ,
कौन वो महारानी थी
वो भी तुम थी देवी
ये दोनों रूप भी तेरे हैं
ये तो गुणों पर निर्भर होता है
क्योंकि गुण तो ऐसे ही कुछ मेरे हैं
हे नारायणी,
क्या तू ही है ईमानदार और सारे पुरुष बेईमान है...
मैं पुरुष हूं
मेरा नारी से सवाल है
क्या हर पुरुष, होता एक समान है
तुम्हारे बलिदानों का मोल नहीं,
जुल्मों को तुमने भी सहा था
लेकिन मत भूल कि तेरी रक्षा में,
रक्त पुरुषों का भी बहा था
मैं तो आज भी तुझको देखकर,
नतमस्तक हो जाता हूं
जिंदगी की, धूप में तपता,
तेरी छाया पाता हूं
मां का आंचल तू ही है,
तू ही बहन का प्यार है
पत्नी रूप में प्रेम है तू ही,
बेटी में तू संस्कार है
पूजा तुझ को सम्मान दिया, दुर्गा शक्ति के रूप में
गीता तक को अपनाया, नारी के स्वरूप में
हे पूजनीय क्या यही तेरा अपमान है...
मैं पुरुष हूं
मेरा नारी से सवाल है
क्या हर पुरुष, होता एक समान है
मत भूलो कि वह भी एक पुरुष है,
जिसको बांधी तुमने राखी है
और वह भी तो एक पुरुष है,
जो बनता जीवनसाथी है
फिर भी तू आ जाती है,
इस दुनिया के बहकावे में
लेकर झंडा शामिल होती,
झूठ के दिखावे में
क्यों तुमने यह भेद किया,
जिससे हो जाता टकराव है
इन बातों से तो रिश्तो में,
आ जाता इक ठहराव है
मुझ बिन तू संपूर्ण कहां, तुझ बिन मैं अधूरा हूं
तू नहीं तो मैं खत्म, तेरे साथ से ही पुरा हूं
है कल्याणी,
तुझे समझ ना आया अब तक,
क्या तुम बिल्कुल ही नादान है...
मैं पुरुष हूं
मेरा नारी से सवाल है
क्या हर पुरुष, होता एक समान है...
कितने पाप है पुरुषों के,
जिन में नारी ने ना साथ दिया
और कितने घर में बतला दूं ,
जिनको नारी ने बर्बाद किया
फिर मैं ही क्यों,
संदिग्ध सा बन जाता हूं
हे नारी, मैं पुरुष हूं
इसलिए चुप रह जाता हूं
मेरा भी मन है वह दुखता है
कोई शक करे वह चुभता है
मुझे क्षमा करें अगर मैं कड़वा ज्यादा बोल गया
दिल में था गुबार सा सब यहां पर खोल गया
अंत में प्रश्न ये बड़ा आसान है,
है काली कलकत्ते वाली
पुरुषों को ही गाली देना,
क्या यह भी कोई समाधान है....
मैं पुरुष हूं,
मेरा नारी से सवाल है
क्या हर पुरुष, होता एक समान है..
अब नारी तो इस रचना को, शायद चूल्हे में जलाएगी
गर शेयर किया किसी पुरुष ने, उसकी शामत आ जाएगी
मेरा देखो क्या होता है, क्योंकि वह भी फोन चलाती है
समझेगी इस बात को, या फिर वो तूफान मचाती है
मैं पुरुष हूं,
मेरा नारी से सवाल है
क्या हर पुरुष, होता एक समान है